न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः । न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1॥ विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् । तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥2॥ पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः । मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥3॥ जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया । तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥4॥ परित्यक्तादेवा विविधविधिसेवाकुलतया मया पंचाशीतेरधिकमपनीते…
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गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारूभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।। जय गौरी नन्दा हरि जय गिरिजानन्दा हरि जय गौरी नन्दा। गणपति आनंदकंदा मैं चरणनवन्दा॥ हरि ॐ जय सूंड सुंडालो नेत्र विशालो कुण्डल झलकन्दा हरि कुण्डल झलकन्दा। कुमकुम केसर चन्दन सिन्दुर वदन विन्दा॥ हरि ॐ जय मुकुट सुघट शोभंता मस्तक शोभंता हरि मस्तक शोभंता बहियाँ बाजूबन्दा पहुँची निरखंता॥ हरि ॐ जय रतन जडित सिंहासन शोभित गणपति आनंदा हरि गणपति आनंदा। गल मोतियन की माला गल वैजयंती माला सुरनर मुनि वन्दा॥ हरि ॐ जय मूषक वाहन राजत शिव सुत आनंदा हरि शिव सुत आनंदा। कहत शिवानन्द स्वामी भजत हराहर स्वामी मेटत भव फंदा॥ हरि ॐ…
पवन मन्द सुगन्ध शीतल हेम मदिंर शोभितम्। श्री निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।। गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्। १।। शेष सुमिरन करत निशिदिन धरत ध्यान महेश्वरम्। श्रीवेद ब्रह्मा पढत अस्तुति श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।। गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। २।। इन्द्र चन्द्र कुबेर दिनकर धूप दीप प्रकाशितम्। श्री सिद्ध मुनिजन करत जै-जै श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।। गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम।। ३।। शक्ति गौरि गणेश शारद नारद मुनि जन उच्चारणम्। श्री योगध्यान अपार लीला बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।। गुरु केदारनाथजी सदाशिवम् काशी विश्वनाथजी विश्वेश्वरम्।। ४।। दक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गन्ध प्रकाशितम्। श्री लक्ष्मी कमला चँवर डोले श्री बद्रीनाथजी विश्वम्भरम्।। गुरु…
ग्रह और रत्न- आधुनिक युग में रत्नों के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। ग्रहों के कुप्रभाव को दूर करने के लिए रत्न धारण करने का प्रचलन जो चला आ रहा है, उसका वैज्ञानिक आधार भी है । हम सब आज यह जानते हैं की हमारी धरती में मुख्य उर्जा का स्रोत सूर्य ग्रह है, तथा सूर्य के प्रकाश में सात रंग पाए जाते हैं । और सौर मंडलीय किरणों का प्रभाव समस्त जीव जंतुओं पर पढ़ता है । प्रत्येक ग्रह की अपनी किरणें होती हैं । और इन किरणों का प्रभाव हम पर भी पड़ता है ।…
घट स्थापना व दुर्गा पूजन सामग्री- पंचमेवा पंचमिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, १ नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, तिल, सुवर्ण प्रतिमा 2, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला . दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी…
अयनांश साधन-अयनांश साधन के कई प्रकार ज्योतिष गणित मे प्रचलित हैं। यहां पर हम चित्रा पक्षीय अयनांश साधन बतलायेंगे। क्योंकि आधुनिक पंचागकार इसी अयनांश को प्रयोग में ला रहे हैं।मेषादि विन्दु से बसंत-संपात विन्दु की दूरी अयनांश कहलाती है।चित्रा तारा से शरद संपात की दूरी भी यही होने के कारण इस अयनांश को चित्रा पक्षीय अयनांश भी कहा जाता है।अयनांश गति-सूर्यसिद्धान्त से 54 विकला प्रतिवर्षग्रहलाघव से 60 विकला प्रतिवर्षदृश्य गणित से 50.3 विकला प्रतिवर्षविधि -खखाष्टम्यून 1800 शकात्खशैले: 70 खपन्चभि 50 भाग कलादि लब्ध्यो:।यदंतरं तत्सहिता द्विहस्ता 22नवांक 9 दस्त्रा अयनांश संज्ञा ॥जिस वर्ष का अयनांश निकालना हो उस वर्ष के शाके में…
अचानक धन प्राप्ति का योग – यदि पंचमेश बली होकर केन्द्र त्रिकोणआदि में शुभ प्रभाव में हो, राहु अथवा केतु का योग पंचम, नवम, अथवा लाभ भाव में किसी शुभ ग्रह के साथ हो जाये तो अचानक धन प्राप्तिका योग बनता है।विदेश यात्रा के योग – यदि कुण्डली में भाग्येश द्वादश भाव में स्थित होतथा लग्नेश द्वादशेश एवं पंचमेश ग्रहों का योग सप्तम भाव में बनता होतो विदेश में रहने के संयोग बनते हैं। भाग्येश बारहवें भाग में हो तो भीविदेश यात्रा के योग बनते हैं।धनी योग – जन्म कुण्डली में जब लग्न का स्वामी दूसरे भाव में औरदूसरे भाव का स्वामी…
ग्रहों की कारक स्थिति -प्रत्येक ग्रह किन किन स्थितियों के कारक हैं । सूर्य – आरोग्य, मन की शुद्धता, पिता, रूचि, प्रताप, ज्ञान, जुआ खेलने की प्रवृति, धैर्य, साहस, औषधि, फोटोग्राफी, न्याय सम्बंधी, क्रिया कलाप, इजीनियर, विद्युत सम्बंधी कार्य, बडे भाई का सुख, शरीर, व्यवहार, पीठ, नाडी, दाई आंख, कर्म, तेज, आदि ।चन्द्रमा – सम्पत्ति, बुद्धि, राजकृपा, माता के प्रति चिन्ता, मन, यश, पुष्टता, रक्त, बाईं आंख, फेफडा, छाती, स्मरण, शक्ति, आवेग,चांदी, मोती, ष्वेत रंग, डेयरी, जहाज, कला, प्रेम, कविता रचना कीर्ति, निद्रा, व्याधि, दवा, अनाज, आयात, निर्यात, आदि ।मंगल – रक्षा कार्य, स्वदेश प्रेम, सेना एवं पुलिस विभाग, साहस,…