ग्रह और रत्न- आधुनिक युग में रत्नों के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। ग्रहों के कुप्रभाव को दूर करने के लिए रत्न धारण करने का प्रचलन जो चला आ रहा है, उसका वैज्ञानिक आधार भी है । हम सब आज यह जानते हैं की हमारी धरती में मुख्य उर्जा का स्रोत सूर्य ग्रह है, तथा सूर्य के प्रकाश में सात रंग पाए जाते हैं । और सौर मंडलीय किरणों का प्रभाव समस्त जीव जंतुओं पर पढ़ता है । प्रत्येक ग्रह की अपनी किरणें होती हैं । और इन किरणों का प्रभाव हम पर भी पड़ता है । रत्न धारण करना अनुकूल भी है और प्रतिकूल भी । अतः रत्न धारण करने से पूर्व ग्रहों का विश्लेषण अच्छे ज्योतिषी से करवा लेना चाहिए | ग्रहों से सम्बंधित रत्न इस प्रकार हैं –
सूर्य माणिक्य
चन्द्र मोती
मंगल मूंगा
बुध पन्ना
गुरु पुखराज
शुक्र हीरा
शनि नीलम
राहु गोमेद
केतु लहसुनिया
रत्न धारण किस प्रकार से करें –
» रत्न धारण करने से पूर्व यह जान लें की वह रत्न आपके लिए कितना लाभप्रद है । इसके लिए ज्योतिषी व आपको निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए ।
» रत्न धारण करने से पहले जन्म कुंडली का सम्यक अध्ययन कर लें ।
» ग्रहों की दृष्टि, दशा, अन्तर्दशा, व वक्री मार्गी गति पर ध्यान दें । पापी वक्री ग्रह की शांति आवश्यक होती है ।
» ग्रहों की उदय अस्त स्थिति को भी जान लें । अस्त ग्रह का रत्न धारण करने पर उस ग्रह का बल बढ़ जाता है ।
» एक दूसरे के नैसर्गिक शत्रु ग्रहों से सम्बंधित रत्नों को धारण न करें ।
रत्न धारण क्यों करें –
» ग्रहों को बली बनाने हेतु रत्न धारण किये जाते हैं और इन्हें इनसे सम्बंधित धातुओं में पहना जाता है ।
» सूर्य को बली बनाने हेतु 3 या 5 रत्ती का माणिक्य सोने में शुक्ल पक्ष के रविवार को अनामिका में अंगूठी बना कर धारण करें । रवि पुष्य योग में धारण करना अधिक श्रेयस्कर माना गया है ।
» चन्द्र को बली बनाने हेतु 5 या 6 रत्ती का मोती चांदी की अंगूठी में शुक्ल पक्ष के सोमबार के दिन प्रातः धारण करें ।
» मंगल को बली बनाने हेतु 5 रत्ती का मूंगा सोने में शुक्ल पक्ष के मंगलवार को अनामिका में धारण करें ।
» बुध को बली बनाने हेतु 6 रत्ती का पन्ना सोने में अनामिका या कनिष्टिका में बुध के दिन प्रातः काल धारण करें ।
» गुरू को बली बनाने हेतु सवा 5 रत्ती या सवा 7 रत्ती का पुखराज चांदी अथवा सोने में बनाकर तर्जनी में शुक्ल पक्ष के गुरूवार को सायं 5 बजे धारण करें।
» शुक्र को बली बनाने हेतु 2 कैरेट का हीरा शुक्रवार के दिन प्रात: मध्यमा अंगुली में धारण करें।
» शनि को बली बनाने हेतु 3,6,7, रत्ती का नीलम पंचधातु की अंगुठी में शनिवार के दिन मध्यमा अंगुली में पहनें।
» राहु को बली बनाने हेतु 6 रत्ती का गोमेद शनिवार या बुधवार के दिन मध्यमा अंगुली में धारण करें।
» केतु के लिये सवा 5 रत्ती का लहसुनिया पंचधातु की अंगुठी में बृहस्पति वार को सूर्योदय से पूर्व धारण करें।
रत्नों का इतिहास अत्यन्त ही प्राचीन है अन्य देशों में भी भारत की तरह इनके जन्म की अनेकों कथाऐं प्रचलित हैं। हमारे देश इस तरह की जो कथाऐं विख्यात हैं वे पुराणों से ली गई हैं। पुराणों में रत्नों के उद्भव के सम्बन्ध में अनेक कथाऐं हैं। अग्नि पुराण के अनुसार महाबली बृत्तासुर ने देव लोक पर आक्रमण किया तब भगवान विष्णु की सलाह पर देवराज इन्द्र ने महर्षि दधीचि से उनकी हड्डी बज्र बनाने हेतु दान में माँगी। इसी बज्र से इन्द्र ने बृतासुर की वध किया। वज्र निर्माण के समय दधीचि की अिस्थयों के जो सूक्ष्म कण धरती पर गिरे उनसे अनेक रत्नों की खाने बनी।
दूसरी कथा समुद्र मन्थन के समय जब अमृत कलश उत्पन्न हुआ तब दैत्य अमृत कलश को लेकर भाग गये। देवताओं ने उनका पीछा किया, छीना छपटी में जो अमृत बिन्दु धरती पर गिरे कालान्तर में अनगिनत रत्नों में परिवर्तित हो गये।
तीसरी कथा जब वामन रुपी भगवान विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि माँगी तो उसने इसे देना स्वीकार कर लिया, भगवान ने विराट रुप धारण कर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया और आधे पग के लिए उसके शरीर की माँग की थी। राजा बलि ने अपना पूरा शरीर भगवान को अर्पित कर दिया। भगवान विष्णु के चरण स्पर्श से बलि रत्नमय और वज्रवत हो गया। तत्पश्चात इन्द्र ने उसे अपने वज्र से पृथ्वी पर मार गिराया।
धरती पर खण्ड खण्ड होकर गिरते ही बलि के शरीर के सभी अंगों से अलग-अलग रंग, रुप व गुण के रत्न प्रकट हुए। भगवान शंकर ने उन रत्नों को अपने चार त्रिशूलों पर स्थापित करके उन पर नौ ग्रहों का प्रभुत्व स्थापित किया तथा चारों दिशाओं में इन खण्डों को विखरा दिया। फलस्वरुप विभिन्न रत्नों की खानों की उत्पतित हुई।
रत्न वास्तव में खनिज पदार्थ हैं जो पृथ्वी की गोद में अलग-अलग रुपों में पाये जाते हैं। वास्तव में ये अलग-अलग तत्वों के आपस में मिलने अर्थात रासायनिक प्रक्रिया के फलस्वरुप बनते हैं। इन तत्वों में प्रमुखत: कार्बन, बेरियम, बेरिलियम, जस्ता, ताँबा, टिन, एल्युमिनियम, कैल्शियम, हाइड्रोजन, लोहा, फॉस्फोरस, मैगनीज, गंधक, पोटेशियम, सोडियम, जिंकोनियम आदि तत्व उपिस्थत होते हैं। हमारी धरति में खनिज रत्नों के अलावा अन्य रत्न भी पाये जाते हैं। जैसे मूँगा व मोती जैविक रत्न हैं तथा तृणमणि वानस्पतिक रत्न हैं। जैविक रत्न समुद्र में होते हैं जबकि वानस्पतिक रत्न हिमालयादि पर्वतों से प्राप्त होते हैं। कृतिम रत्नों का निर्माण पुराकाल में भी किया जाता था लेकिन आधुनिक समय में कृतिम रत्नों का उत्पादन अधिक मात्रा में हो रहा है जिससे वास्तविक एवं शुद्ध रत्नों की पहचान में कठिनाई हो रही है।