रत्न धारण करने का प्रचलन आज काफी बढ़ गया है। रत्नों को पहिचानना काफी कठिन काम है, इसमें आम आदमी तो क्या जानकार जौहरी भी मात खा जाते हैं। माणिक्य रत्न के विषय में यहां पर कुछ जानकारियां जो मेरे द्वारा संकलित है आप के मध्य रख रहा हूँ।माणिक्य रत्न प्राचीन काल से ही प्रचलन में रहा है। सबसे शुद्ध माणिक्य म्यांमार में पाया जाता है। आज माणिक्य को कृतिम रूप में भी बनाया जाता है। जिसमें एल्यूमीनियम और आक्सीजन को संश्लेषित किया जाता है। माणिक्य को शुद्धता की कसौटी पर इस प्रकार परखा जा सकता है। गाय के कच्चे दूध में यदि माणिक्य को डाला जाय तो दूध गुलाबी रंग का हो जाता है। अधखिले कमल के उपर यदि माणिक्य को रखा जाय तो कमल खिल उठता है। अच्छा तथा कान्ति युक्त, माणिक्य ही लेना चाहिए। कभी भी चमक रहित, दूधिया, जाल युक्त, तथा टूटा हुआ रत्न कदापि धारण ना करें। दोषयुक्त रत्न को धारण करने से धारक को लाभ के वजाय हानि हो जाती है।मोती रत्न अत्यन्त प्राचीन रत्न है। तथा प्राचीन काल में गज मुक्ता, शंख मुक्ता, बंश मुक्ता, आकाष मुक्ता, मीन मुक्ता, सर्प मुक्ता, मेघ मुक्ता सीप मुक्ता के नाम से अनेक प्रकार की मोतीयों का प्रचलन था। आज केवल सीप मुक्ता के अलावा अन्य सभी दुर्लभ हैं। जापान में सबसे अधिक सीप से मोती प्राप्त की जाती है। मोती में कोमलता, चिकनापन, निर्मलता, चमक का होना उसे श्रेष्ठ बनाता है। मोती को शुद्धता की कसौटी पर इस प्रकार परखा जा सकता है। धान की भूसी में मोती को रगड़ने पर उसकी चमक बढ़ जाती है। मिट्टी के पात्र में गोमूत्र लेकर यदि मोती को रात भर रखा जाय यदि मोती न टूटे तो उसे शुद्ध माना जाता है। मोती को घी में डालने पर यदि घी पिघल जाये तो मोती को शुद्ध माना जाता है।