ग्रहों की कारक स्थिति –प्रत्येक ग्रह किन किन स्थितियों के कारक हैं ।
सूर्य – आरोग्य, मन की शुद्धता, पिता, रूचि, प्रताप, ज्ञान, जुआ खेलने की प्रवृति, धैर्य, साहस, औषधि, फोटोग्राफी, न्याय सम्बंधी, क्रिया कलाप, इजीनियर, विद्युत सम्बंधी कार्य, बडे भाई का सुख, शरीर, व्यवहार, पीठ, नाडी, दाई आंख, कर्म, तेज, आदि ।
चन्द्रमा – सम्पत्ति, बुद्धि, राजकृपा, माता के प्रति चिन्ता, मन, यश, पुष्टता, रक्त, बाईं आंख, फेफडा, छाती, स्मरण, शक्ति, आवेग,चांदी, मोती, ष्वेत रंग, डेयरी, जहाज, कला, प्रेम, कविता रचना कीर्ति, निद्रा, व्याधि, दवा, अनाज, आयात, निर्यात, आदि ।
मंगल – रक्षा कार्य, स्वदेश प्रेम, सेना एवं पुलिस विभाग, साहस, धैर्य, युद्ध, लूटमार, चतुराई, रक्त सम्बंधी बीमारी, प्रदोष, गर्भ, प्रदर, रज, पित्त, वायु, कान का रोग, खाज खुजली, वीरता, चैर्य कायर्, आदि ।
बुध – पेट का रोग, हस्त रेखा, विशेषज्ञ, एकाउंटेंट, ज्योतिष, नपुंसकत्व, खेलकूद, चेतना, बुद्धि, गणित, कार्य, परीक्षा, विद्यार्थी, वायु रोग, कोढ, मंदाग्नि, भूत प्रेतबाधा, आलसीपन, सिरदर्द, पागलपन, वृथा अभिमान, कल्पना और स्मरण, शक्ति, स्वर, श्वास, रोग, गूंगापन, हकलाहट, मातृभाषा, बैंक, बीमा, वाणिज्य, व्यवसाय, डाकतार विभाग, शेयर बाजार आदि ।
बृहस्पति – ज्ञान, चिंतन, धार्मिक कार्य, तीर्थ या़त्रा, मांगलिक कार्य, वेद पठन, शिक्षा, शास्त्र चर्चा, पुत्र, विवेक, निर्भयता, सहायता की भावना, तीव्र वुद्धि, क्षमता, संकट में धीरता, सर्व सुख, आजीविका, वाकपटुता, व्याख्याता, लेखक, प्रकाशक, आदि ।
शुक्र – कन्या संतान, मासिक धर्म, पेट की जलन, स्त्री, रोग, अंडाशय, टांसिल, शराब का व्यापार, व्यभिचार, दास -दासी, प्रेम में लोकप्रियता, स्त्रियों से लाभ, रेस, फिल्म व्यापार, सट्टा, जुआ, यश, वस्त्र, रत्नाभूषण, धन, सुगंधित पदार्थ, गीत काव्य, कला प्रेम, मधुर वाणी, गायन वादन, आदि ।
शनि – दुष्टता, पति या पत्नी से अनबन, तलाक, पत्थरों का व्यापार, वात रोग, गठिया, नीच कार्य, उन्माद, अंधकार, रूकावट, मतभेद, मशीनों के पाट्र्स का व्यापार, लोहे तिल आदि का व्यापार काला रंग, कर्कश वाणी, दार्शनिक आदि ।
राहु – ताश, तर्कशक्ति, छिद्रान्वेषण, आध्यात्मिक उन्नति, अस्पष्ट व्यवहार, भ्रम, अफवाहें आदि ।
केतु – बलात्कार, दुष्टता, फूहडबातें, नीच व निम्न स्तर के कार्य, कठिन कार्य, चर्मरोग, पिशाच वाधा, क्षुधा, निर्बलता, कृशता, आदि ।
खगोल ष्षास्त्र की महत्वपूर्ण जानकारी –
खगोल – वह कल्पित खोखला गोला जिसके अन्दर ग्रह तथा आकाषीय पिण्डों को निरूपित किया जा सके तथा जिसका केेन्द्र स्वयं द्रष्टा होता है ।
ग्रह – खगोल में स्थित वह पिण्ड जो किसी अन्य स्थिर खगोलीय पिण्ड के चारों ओर घूमता हो ।
क्रान्तिवृत – जिस कक्षा में पृथ्वी घूमती है वह कक्षा पथ क्रान्तिवृत कहलाता है ।
उन्मण्डल – निरक्ष खमध्य के नब्बे अंश चाप की दूरी पर से बनाये गये वृत्त को उन्मण्डल वृत्त कहते हैं । इस वृत्त को 6 घण्टे का वृत्त भी कहते हैं । क्योंकि इस वृत्त पर जब सूर्य विम्ब का केन्द्र विन्दु आता है तब स्वदेश की सूर्य घडी में सदा 6 बजता है । इस तरह प्रत्येक स्थान का तत्स्थानीय उन्मण्डल होता है ।
लग्न – इष्ट दिन के इष्ट समय में क्रान्तिवृत का जो विन्दु पूर्व क्षितिज में लगा रहता है वह उस दिन का इष्ट कालिक लग्न कहा जाता है । वह सायन मेषादि विन्दु से जितनी राषि अंष कला विकला पर होता है उसे ही सायन लग्न स्पष्ट कहते हैं । जिसमें इष्ट दिन का अयनांष घटाने से अभीष्ट निरयन लग्न स्पष्ट हो जाता है ।