Facebook Twitter Instagram
    Trending
    • व्रत पर्व अप्रैल 2025
    • व्रत पर्व मार्च 2025
    • व्रत-पर्व फरवरी 2025
    • व्रत पर्व जनवरी 2025
    • व्रत-पर्व सितम्बर 2024
    • व्रत-पर्व अगस्त 2024
    • व्रत पर्व जुलाई -2023
    • व्रत-पर्व जून 2023
    Facebook Twitter Instagram
    0 Shopping Cart
    Nakshatra Lok Astrology Services | Kashipur | Uttarakhand
    • Home
    • Services
      • ज्योतिषीय समाधान
        • भविष्यवाणी
        • उपाय
        • संपत्ति
        • व्यवसाय
        • ज्योतिष सीखिये
      • जन्म कुंडली
        • जन्मकुण्डली निर्माण
        • जन्म कुण्डली निर्माण फलादेशों सहित
        • जन्म कुण्डली फलादेश
        • जन्म कुण्डली बृहद
        • कुण्डली मिलान
      • गण्डमूल शांति
      • मूलशांति
      • विवाह
      • शुभ योग एवम् मुहूर्त
    • ज्योतिष 2025

      व्रत पर्व मार्च 2025

      January 20, 2025

      व्रत-पर्व फरवरी 2025

      January 2, 2025

      व्रत-पर्व अगस्त 2024

      August 1, 2024

      चैत्र नवरात्र पूजन विधि –

      March 25, 2022

      व्रत-पर्व नवंबर 2020

      October 4, 2020
    • वास्तु-शास्त्र
    • रुद्राक्ष
    • ग्रह और रत्न
    • पूजन विधि
    • आरती और स्तोत्र

      श्रीरामरक्षास्तोत्रम् –

      July 1, 2015

      सप्तश्लोकी श्री दुर्गा कवचम्-

      July 1, 2015

      श्री अच्युताष्टकं

      July 1, 2015

      श्री आदित्यहृदय स्तोत्रम्

      July 1, 2015

      लिंगाष्टकम्

      April 13, 2014
    • ग्रह
    • यजमान
    • कुंडली
    • पंचांग
    Nakshatra Lok Astrology Services | Kashipur | Uttarakhand
    Home»Latest Updates»चैत्र नवरात्र पूजन विधि –
    Latest Updates

    चैत्र नवरात्र पूजन विधि –

    संपादक नक्षत्रलोक तिथि पंचांगBy संपादक नक्षत्रलोक तिथि पंचांगMarch 25, 2022No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email
    घट स्थापना व दुर्गा पूजन सामग्री-
    पंचमेवा पंच​मिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, १ नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग,  पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, सुवर्ण प्र​तिमा 2, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला . 
    दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें।
    आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें  “ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥” इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें – ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गो​विन्दाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
    ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। 
    त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 
    शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें- 
    चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,

    आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

     दुर्गा पूजन हेतु संकल्प –

    पंचोपचार करने बाद संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :
    ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे,अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे उत्तरायने  बसंत   ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे  चैत्र मासे  शुक्ल पक्षे प्रतिपदायां तिथौ शनि वासरे  (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं करिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं  यथामिलितोपचारे गणपति पूजनं करिष्ये।
     

    गणपति पूजन –

     

    किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें. 
    गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। 
    उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
    आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर
    आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
    तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥
    ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें। हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि, अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि, आचमनीय-स्नानीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि वस्त्र लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि, यज्ञोपवीत-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि, पुनराचमनीयम्, ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः  रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं. इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं.  
    पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र- शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च,
    आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः . इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें- ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं 
    समर्पया ​मि अब फल लेकर गणपति पर चढ़ाएं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पया​मि, ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य द​क्षिणां समर्पया​मि, अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अ​र्पित करें,  ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें। 
    इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें. 
    कलश पूजन – 
    घड़े या लोटे पर कलावा बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें, नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें,हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आवाहन करें. ॐ त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानोहर्विभि:। अहेडमानोवरुणेह बोध्युरुशं समानऽआयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,
    ॐ भूर्भुव: स्व: भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि।
    इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें.  

    दुर्गा पूजन-

    सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
    सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
    शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
    आवाहन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि॥
    आसन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पया​मि॥
    अर्घ्य- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पया​मि॥
    आचमन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥
    स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पया​मि॥
    स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।
    पंचामृत स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पया​मि॥
    गन्धोदक-स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥
    शुद्धोदक स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥
    आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।
    वस्त्र- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥ वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि। 
    सौभाग्य सू़त्र- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पया​मि ॥
    चन्दन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि ॥
    ह​रिद्राचूर्ण- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि ॥
    कुंकुम- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि ॥ 
    ​सिन्दूर- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि ॥
    कज्जल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि ॥
    दूर्वाकुंर- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरा​नि समर्पया​मि ॥
    आभूषण- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​नि समर्पया​मि ॥
    पुष्पमाला- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥
    धूप- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥ 
    दीप- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि॥ 
    नैवेद्य- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥
    नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।
    फल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥
    ताम्बूल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥
    द​क्षिणा- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द​क्षिणां समर्पया​मि॥
    आरती- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकं समर्पया​मि॥
    क्षमा प्रार्थना
    न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
    न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
    न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
    परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1॥                            
    विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
    विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
    तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
    कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥2॥                         
    पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
    परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
    मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
    कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥3॥                          
    जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
    न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
    तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
    कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥4॥                         
    परित्यक्तादेवा विविध​विधिसेवाकुलतया
    मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
    इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
    निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥5॥              
    श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
    निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
    तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
    जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥6॥    
                        
    चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
    जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
    कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
    भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥7॥                            
    न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
    न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
    अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
    मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥8॥                         
    नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
    किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
    श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
    धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥9॥                                    
    आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
    करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
    नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
    क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥10॥                                       
    जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
    अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥11॥                                                     
    मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि ।
    एवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु  ॥12॥  

    About The Author

    संपादक नक्षत्रलोक तिथि पंचांग

    See author's posts

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    संपादक नक्षत्रलोक तिथि पंचांग

    Related Posts

    व्रत पर्व अप्रैल 2025

    January 20, 2025

    व्रत पर्व मार्च 2025

    January 20, 2025

    व्रत-पर्व फरवरी 2025

    January 2, 2025
    Our Products
    • Kundali
    • Rudraksh
    • Gemstones
    • Yantra
    दैनिक राशिफल
    Aries (मेष) Taurus (वृष) Gemini (मिथुन) Cancer (कर्क) Leo (सिंह) Virgo (कन्या)
    Libra (तुला) Scorpio (वृश्चिक) Sagittarius (धनु) Capricorn (मकर) Aquarius (कुम्भ) Pisces (मीन)
    Latest Updates

    व्रत पर्व अप्रैल 2025

    January 20, 2025

    व्रत पर्व मार्च 2025

    January 20, 2025

    व्रत-पर्व फरवरी 2025

    January 2, 2025

    व्रत पर्व जनवरी 2025

    January 1, 2025
    What's New

    व्रत पर्व अप्रैल 2025

    January 20, 2025

    व्रत पर्व मार्च 2025

    January 20, 2025

    व्रत-पर्व फरवरी 2025

    January 2, 2025
    Featured Products
    • यज्ञोपवीत/जनेऊ यज्ञोपवीत/जनेऊ ₹50.00
    • नक्षत्रलोक तिथि पंचांग नक्षत्रलोक तिथि पंचांग ₹70.00
    • चार मुखी रुद्राक्ष चार मुखी रुद्राक्ष ₹900.00
    • कंप्यूटर निर्मित कुंडली कंप्यूटर निर्मित कुंडली ₹250.00
    Product categories
    • Gemstones (20)
    • Kundali (9)
    • Rudraksh (5)
    • Yantra (7)
    Facebook Twitter Instagram YouTube
    • About Us
    • आभार समर्पण
    • Our Products
    • My Account
    • Cart
    • Contact Us
    © 2025 nakshatralok.com . Designed By : Technolectic India LLP

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.