राहु सप्तम भाव में और केतु लग्न स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है । कालसर्प योग की शास्त्रीय परिभाषा में इस प्रकार का अनुदित योग परिगणित नहीं है । लेकिन व्यवहार में इस प्रकार के योग का भी संबंधित जातकों पर अशुभ प्रभाव पड़ता देखा जाता है ।तक्षक नामक कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्ति का सुख नहीं मिल पाता । या तो उसे पैतृक संपत्ति मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है ।ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं । गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है । वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव तक कि नौबत आ जाती है । जातक को अपने घर के अन्य सदस्यों की भी यथेष्ट सहानुभूति नहीं मिल पाती । साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रु षडयंत्रों का शिकार भी बनना पड़ता है । जुए, सट्टे व लाटरी की प्रवृत्ति उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी तक के कगार पर पहुंच जाता है । संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है । उसे गुप्तरोग की पीड़ा भी झेलनी पड़ती है । किसी को दिया हुआ धन भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता । यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपना भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना शुरु कर दें साथ ही अपने मान-सम्मान के दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं लगभग नहीं आती ।
दोष निवारण के कुछ सरल उपाय:-
१.कालसर्प दोष निवारक यंत्र घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें ।
२.सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं ।
३.देवदारु, सरसों तथा लोहवान – इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें ।