पूर्वाह्न व्यापिनी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को ‘गङ्गा -दशहरा’ पर्व मनाया जाता है। इस दिन पृथ्वी पर गंगावतरण हुआ था अतएव इस दिन श्री गंगा आदि का स्नान , अन्न-वस्त्रादि का दान, पितृ-तर्पण ,जप-तप, उपासना और उपवास किया जाए तो दस प्रकार के पाप (तीन प्रकार के कायिक, चार प्रकार के वाचिक और तीन प्रकार के मानसिक) दूर होते हैं।
योगाधिक्ये फलाधि स्यात् – इसमें जितने योगों की अधिकता रहे उतना फल अधिक होता है। ये दस योग इस प्रकार हैं –
१-ज्येष्ठ मास
२-शुक्ल पक्ष
३-दशमी तिथि
४-बुधवार
५-हस्त नक्षत्र
६-व्यतिपात योग
७-गरकरण
८-आनंद योग
९-कन्या राशि का चंद्र
१०-वृष राशि का सूर्य ।
ज्येष्ठ अधिक मास होने की स्थिति में, उसी अधिक मास में यह पर्व मनाया जाता है, शुद्ध में नहीं।
अतः शास्त्रानुसार ज्येष्ठ अधिक मास में गङ्गा-स्नान, पूजनादि करना शुद्ध ज्येष्ठ की अपेक्षा अधिक फलप्रदायक होता है। इस वर्ष 12 जून, 2019 ई., बुध वार को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी-तिथि के दिन ही श्रीगङ्गा -दशहरा (विशेषकर हरिद्वार में) का पर्व आयोजित होगा। इस दिन हस्त नक्षत्र दिन में 11घं.-52 मि.तक व्याप्त रहेगा। जो व्यक्ति हरिद्वार आदि तीर्थ पर न जा सके, वह घर में ही गङ्गा जल युक्त स्वच्छ जल में मन्त्र पूर्वक, स्नान , आवाहन एवं पूजनादि करें – मंत्र -‘ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै नमः॥’
इस दिन सुबह स्नान, दान तथा पूजन के उपरांत कथा भी सुनी जाती है जो इस प्रकार से है :-
प्राचीनकाल में अयोध्या के राजा सगर थे. महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र थे. एक बार सगर महाराज ने अश्वमेघ यज्ञ करने की सोची और अश्वमेघ यज्ञ के घोडे. को छोड़ दिया. राजा इन्द्र यह यज्ञ असफल करना चाहते थे और उन्होंने अश्वमेघ का घोड़ा महर्षि कपिल के आश्रम में छिपा दिया. राजा सगर के साठ हजार पुत्र इस घोड़े को ढूंढते हुए आश्रम में पहुंचे और घोड़े को देखते ही चोर-चोर चिल्लाने लगे. इससे महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोले राजा सगर के साठ हजार पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा. सभी जलकर भस्म हो गये.
राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने मृतात्माओं की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की ताकि वह गंगा को धरती पर ला सकें किन्तु सफल नहीं हो पाए और अपने प्राण त्याग दिए. गंगा को इसलिए लाना पड़ रहा था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे और पुर्वजों की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी नहीं बची थी.
महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की और एक दिन ब्रह्मा जी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और भगीरथ को वर मांगने के लिए कहा तब भगीरथ ने गंगा जी को अपने साथ धरती पर ले जाने की बात कही जिससे वह अपने साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति कर सकें. ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा को तुम्हारे साथ भेज तो दूंगा लेकिन उसके अति तीव्र वेग को सहन करेगा? इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की शरण लेनी चाहिए वही तुम्हारी मदद करेगें.
अब भगीरथ भगवान शिव की तपस्या एक टांग पर खड़े होकर करते हैं. भगवान शिव भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगाजी को अपनी जटाओं में रोकने को तैयार हो जाते हैं. गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड. देते हैं. इस प्रकार से गंगा के पानी से भगीरथ अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल होता है.