होलिका दहन पर विभिन्न मत मतान्तर के कारण इस वर्ष भी संशय की स्थिति उत्पन्न हो रही है जिसका समाधान लोकहित में निम्नवत कर रहे हैं-
इस वर्ष 22 मार्च 2016 को पूर्णिमा तिथि अपराह्न में 03 बजकर 12 मिनट से आरम्भ होगी और अगले दिन 23 मार्च 2016 को सायं 05 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। सूर्यास्त से पूर्व ही इस दिन पूर्णिमा तिथि समाप्त हो रही है। इस सन्दर्भ में ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रीय विचार इस प्रकार हैं।
निर्णय सिंधु के अनुसार “प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या पौर्णिमा फाल्गुनी सदा। तस्यां भद्रामुखं त्यक्त्वा पूज्या होला निशामुखे” अर्थात् फाल्गुन मास की पूर्णिमा को प्रदोष व्यापिनी में भद्रा के मुख काल को छोड़कर सूर्यास्त के बाद होलिका का दहन करना चाहिए। धर्मसिंधु कार ने प्रदोष के सन्दर्भ में लिखा है कि “सूर्यास्तमानोत्तर त्रिमुहूत्र्तात्मकं” और आचार्य लल्ल के अनुसार “पृथिव्यां यानि कार्याणि शुभानि त्वशुभानि तु। तानि सर्वाणि सिद्धयन्ति विष्टिपुच्छे न संशय।।“ इस वाक्यानुसार और ज्योतिष गणनानुसार भद्रा का पुच्छ काल रात्रि 11:44 से मध्य रात्रि 01: 05 तक रहेगा जो कि होलिका दहन के लिए सही समय नहीं हो सकता क्योंकि होलिका दहन सूर्यास्त और मध्यरात्रि से पूर्व ही किया जाता है।
इस वर्ष प्रतिपदा वृद्धिगामिनी पूर्णिमा है। इस सन्दर्भ में वेदव्यास जी ने लिखा है कि “सार्धयाम त्रयं वा स्यात् द्वितीये दिवसे यदा। प्रतिपद वर्धमाना तु तदा सा होलिका सदा।।“ अर्थात् यदि प्रतिपदा वृद्धिगामिनी हो तो होलिका दहन सायंकाल व्याप्त पूर्णिमा में करना चाहिए और हमनें अपने पूर्वजों के मुख से भी सुना था कि पूर्णिमा और प्रतिपदा के जोड़ में अर्थात् संधिकाल में होलिका दहन किया जाता है। सूर्यास्त के 6 घड़ी तक प्रदोष को स्वीकारा जाता है तो 23 मार्च को प्रदोष काल में ही होलिका दहन शास्त्रसम्मत कहा जा सकता है।
होलिका दहन 23 मार्च को सायंकाल 18:20 से 20:45 के मध्य करना शुभ तथा शास्त्र सम्मत है।