संवत्सर का भ्रम- संवत्सर की गणना मध्यम गुरु राशि प्रवेश से की जाती है। गुरु ग्रह का एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करने में लगभग 361.04908 दिन लगते हैं । पंचागीय वर्ष का समय 365.2563638 माना जाता है। पंचांगीय वर्ष और ब्राहस्पत्य वर्ष में 4.19311 दिन का अंतर होता है।
इसलिए यहा ध्यान देने योग्य यह है कि नव वर्ष का आरंभ और गुरु ग्रह का राशि परिवर्तन एक साथ नहीं हो सकता है। अतः चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन जो संवत् विद्यमान रहता है उसे ही वर्ष पर्यन्त संकल्पादि में प्रयोग किया जाता है लेकिन उसका आरंभ गुरु के मध्यम राशिप्रवेश के अनुसार पहले ही हो जाता है। सभी पुरोहित वर्ग और धर्म प्रेमी जनता का यह प्रश्न है कि आंनंद संवत्सर तो क्रमानुसार आना चाहिए था लेकिन पंचांग में राक्षस संवत्सर कैसे आया? सभी विद्वज्जन कृपया ध्यान दीजिए कि जितने समय में गुरु अपनी मध्यम गति 4 कला 59.1 विकला से एक राशि भोगता है वह समय संवत्सर है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार इसमें 361.02672 दिन होते हैं।
संवत्सर गणना की प्रचलित विधियों में सर्वाधिक प्रमाणिक विधि सूर्य सिद्धांत की है-
द्वादशघ्नागुरोर्याताभगणावर्तमानकैः ।
राशिभिःसहितारूशुद्धाः षष्टयास्युर्विजयादयः।। 01/55।।
यदि हम सामान्यतया भी इसे देखें तो पंचागीय स्पष्ट गुरु का विगत वर्ष संवत् 2077 में मकर राशि में प्रवेश 30 मार्च को हुआ था और संवत् का आरंभ 25 मार्च 2020 को हुआ था इस समय तक प्रमादी संवत था और गुरु के राशि परिवर्तन के साथ आनंद संवत आरंभ हो गया और 6 अप्रैल 2021 को गुरु के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही आनंद संवत् समाप्त हो गया और राक्षस नाम संवत् आरंभ हो गया।
गणना करने पर संवत् 2077 में दिनांक 05 अप्रैल 2020 को पूर्वाह्न 11बजे प्रमादी नाम संवत्सर पूर्ण होकर आनन्द नाम संवत्सर प्रारम्भ हो गया है जो 01 अप्रैल 2021 को पूर्वाह्न 11 बजकर 38 मिनट पर पूर्ण हो जायेगा और उसी क्षण राक्षस नाम संवत्सर प्रारम्भ हो जायेगा । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तक आनंद संवत् का भोग न होने के कारण आनंद संवत विलुप्त हो गया है।