वसंत पंचमी पर्व पर ज्योतिष शास्त्रीय विवेचन- पंचागीय विभेद के कारण इस वर्ष वसंत पंचमी पर्व पर विवाद बना हुआ है कि यह पर्व 12 फरवरी को मनाया जाय या 13 फरवरी को इस विषय पर ज्योतिष शास्त्रीय अवधारणा यह है कि वेध सिद्ध गणित से साधित तिथ्यादि को व्रतपर्वादि में ग्रहण करना चाहिए। क्योंकि प्राचीन परम्परा से साधित पंचागों में तिथ्यादि मान स्थूल होते हैं।
कारण अनेक हैं जैसे अयनांश तथा परमक्रान्ति का मान; परमक्रान्ति का मान प्राचीन परम्परा में 24 अंश जबकि सूक्ष्म गणित में 23.44 अंश माना जाता है। वेध सिद्ध गणित प्रत्यक्ष गणित है। इस में किसी भी प्रकार का संशय नहीं होना चाहिए।
पंचागों में प्रचलित अवधारणा के आधार पर यह विभेद उत्पन्न हो रहा है। कुर्मांचल में प्रचलित रामदत्त पंचाग तथा श्री ताराप्रसाद दिव्य पंचाग में भी यही विभेद है। एक पंचाग प्राचीन गणित का अनुयायी है तो दूसरा आधुनिक वेध सिद्ध गणित का। ग्रहण गणित भी आधुनिक वेधशाला साधित होता है और ज्योतिष का सार ही ग्रहण गणित है इसलिए आधुनिक वेध सिद्ध गणित का ही हमें पालन करना चाहिए हमारे आचार्यों ने आधुनिक वेध सिद्ध गणित को ही अधिक मान्यता दी है सूर्यसिद्धांत के नक्षत्रग्रहयुत्यधिकार श्लोक बारहवें के उत्तरार्ध में स्पष्ट कहा है –
गोलं बध्वा परीक्षेत विक्षेपं ध्रुवकं स्फुटम्।
अर्थात् यंत्रों के द्वारा इन स्फुट विक्षेपों और ध्रुवकों की परीक्षा करनी चाहिए और इस सन्दर्भ में सूर्यसिद्धांत त्रिप्रश्नाधिकार श्लोक 11 का पूवार्ध अवलोकनीय है ।
स्फुटं दृकतुल्यतां गच्छेदयने विषुद्वये। अर्थात् अयनांश की परीक्षा वेध से भी करनी चाहिए ।
इस आधार पर पंचमी का यह पावन पर्व हमें 12 फरवरी को मनाना चाहिए क्योंकि इस दिन की तिथि वेध सिद्ध है।
वसंत पंचमी पूजा मूहूर्तः- 09:16 से 12:25 तक है।