राहु ग्यारहवे भाव में और केतु पंचम भाव में हों तथा बाकि के सभी ग्रह इनके बीच में हो तो विषधर या विषाक्त नामक कालसर्प योग बनाते हैं । इस दोष के प्रभाव से जातक को ज्ञानार्जन करने में आंशिक व्यवधान उपस्थित होता है । उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाधा आती है एवं इनकी स्मरण शक्ति प्राय: कमजोर ही होती है । जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है । चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी मत-मतान्तर या झगड़ा-झंझट भी हो जाता है । बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है । इस योग के कारण जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर निवास करता है या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करता रहता है । लेकिन कालान्तर में जातक के जीवन में स्थायित्व भी आता है । लेकिन प्रायः लाभ मार्ग में थोड़ा बहुत व्यवधान उपस्थित होता ही रहता है । वह व्यक्ति कभी-कभी बहुत चिंतातुर हो जाता है । धन सम्पत्ति को लेकर कभी बदनामी की स्थिति भी पैदा हो जाती है या कुछ संघर्ष की स्थिति सी बनी रहती है । उसे सर्वत्रलाभ दिखलाई देता है पर लाभ मिलता नहीं है । संतान पक्ष से भी थोड़ी-बहुत परेशानी होते रहती है । जातक को कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों से भी कष्ट उठाना पड़ता है । उसके जीवन का अंत प्राय: रहस्यमय ढंग से होता है । उपरोक्त परेशानी होने पर निम्नलिखित उपाय करें ।
दोष निवारण के कुछ सरल उपाय:-
१.ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि श्रावण मास में 30 दिनों तक शिवलिंग के उपर भगवान महादेव जी का अभिषेक करें ।
२.सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें तो इस दोष से शांति मिलती है ।
३.इस दोष से पीड़ित जातक को सवा महीने तक लगातार देवदारु, सरसों एवं लोहवान – इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें ।
४.प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर – ”ॐ हर हर महादेव” कहते हुए अभिषेक करें । ऐसा हर रोज श्रावण के महिने में करने से अकल्पनीय लाभ होता है ।
५.इस दोष से पीड़ित जातक को चाहिए की सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं समस्त बिगड़ते कार्य बनने शुरू हो जायेंगें ।