अजा एकादशी –
भाद्रपद कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी अजा या कामिका एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस दिन की एकादशी के दिनभगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए. 25 अगस्त के दिन वर्ष 2011 में अजा नाम की एकादशी की जायेगी. रात्रि जागरण तथा व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर होते है. इस एकादशी के फल लोक और परलोक दोनों में उतम कहे गये है. अजा एकाद्शी व्रत करने से व्यक्ति को हजार गौदान करने के समान फल प्राप्त होते है. उसके जाने अनजाने में किए गये सभी पाप समाप्त होते है. और जीवन में सुख-समृ्द्धि दोनों की उसे प्राप्ति होती है.
अजा एकादशी व्रत विधि –
भाद्रपद, कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन की एकादशी अजा नाम से पुकारी जाती है। इस एकादशी का व्रत करने के लिये व्यक्ति को दशमी तिथि को व्रत संबन्धी कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस दिन व्यक्ति को निम्न वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
1. व्रत की दशमी तिथि के दिन व्यक्ति को मांस कदापि नहीं खाना चाहिए।
2. दशमी तिथि की रात्रि में मसूर की दाल खाने से बचना चाहिए. इससे व्रत के शुभ फलों में कमी होती है।
3. चने नहीं खाने चाहिए।
4. शाक आदि भोजन करने से भी व्रत के पुण्य फलों में कमी होती हैं।
5. इस दिन शहद का सेवन करने से एकादशी व्रत के फल कम होते हैं।
6. व्रत के दिन और व्रत से पहले दिन की रात्रि में कभी भी मांग कर भोजन नहीं करना चाहिए।
7. इसके अतिरिक्त इस दिन दूसरी बार भोजन करना सही नहीं होता है।
8. व्रत के दिन और दशमी तिथि के दिन पूर्ण ब्रह्माचार्य का पालन करना चाहिए।
9. व्रत की अवधि में व्यक्ति को जुआ नहीं खेलना चाहिए।
10. एकादशी व्रत हो, या अन्य कोई व्रत व्यक्ति को दिन समयावधि में शयन नहीं करना चाहिए।
11. दशमी तिथि के दिन पान नहीं खाना चाहिए।
12. दातुन नहीं करना चाहिए तथा किसी पेड़ को काटना नहीं चाहिए।
13. दूसरे की निन्दा करने से बचना चाहिए।
14. झूठ का त्याग करना चाहिए।
अजा एकादशी का व्रत करने के लिए उपरोक्त बातों का ध्यान रखने के बाद व्यक्ति को एकाद्शी तिथि के दिन शीघ्र उठना चाहिए। उठने के बाद नित्यक्रिया से मुक्त होने के बाद, सारे घर की सफाई करनी चाहिए और इसके बाद तिल और मिट्टी के लेप का प्रयोग करते हुए, कुशा से स्नान करना चाहिए। स्नान आदि कार्य करने के बाद, भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए।
भगवान श्री विष्णु जी का पूजन करने के लिये एक शुद्ध स्थान पर धान्य रखने चाहिए। धान्यों के ऊपर कुम्भ स्थापित किया जाता है। कुम्भ को लाल रंग के वस्त्र से सजाया जाता है। और स्थापना करने के बाद कुम्भ की पूजा की जाती है। इसके पश्चात कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी की प्रतिमा या तस्वीर लगाई जाती है। अब इस प्रतिमा के सामने व्रत का संकल्प लिया जाता है। बिना संकल्प के व्रत करने से व्रत के पूर्ण फल नहीं मिलते है। संकल्प लेने के बाद भगवान की पूजा धूप, दीप और पुष्प से की जाती है।
अजा एकादशी व्रत कथा –
प्राचीन काल में एक चक्रवती राजा राज्य करता था। उसका नाम हरिश्चन्द्र था। वह अत्यन्त वीर प्रतापी था और सत्यवादी था।उसने अपने एक वचन को पूरा करने के लिये अपनी स्त्री और पुत्र को बेच डाला था. और वह स्वयं भी एक चाण्डाल का सेवक बन गया था।
उसने उस चाण्डाल के यहां कफन देने का काम किया परन्तु उसने इस दुष्कर कार्य में भी सत्य का साथ न छोड़ा जब इस प्रकार रहते हुए उसको बहुत वर्ष हो गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ, और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा। वह उस जगह सदैव इसी चिन्ता में लगा रहता था।
कि मै, क्या करूँ, एक समय जब कि वह चिन्ता कर रहा था, तो गौतम ऋषि आये, राजा ने इन्हें, देखकर प्रणाम किया और अपने दुःख की कथा सुनाने लगे। महर्षि राजा के दुःख से पूर्ण वाक्यों को सुनकर अत्यन्त दुःखी हुये और राजा से बोले की हे राजन, भाद्रपद के कृ्ष्णपक्ष में एक एकादशी होती है. एकादशी का नाम अजा है तुम उसी अजा नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो, तथा रात्रि को जागरण करो इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेगें. गौतम ऋषि राजा से इस प्रकार कहकर चले गए।
अजा नाम की एकाद्शी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधि-पूर्वक व्रत किया, रात्रि जागरण किया। उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए उसी समय स्वर्ग में नगाडे बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी। राजा ने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र और महादेवजी को खडा पाया अपने मृ्तक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा।
व्रत के प्रभाव से उसको पुनः राज्य मिल गया। अन्त समय में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया। यह सब अजा एकाद्शी के व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य इस व्रत को विधि-विधान पूर्वक करते है तथा रात्रि में जागरण करते है उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्ग जाते हैं इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है।