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    छठ पूजा- 2015

    संपादक नक्षत्रलोक तिथि पंचांगBy संपादक नक्षत्रलोक तिथि पंचांगNovember 16, 2015No Comments4 Mins Read
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    छठ पूजा व्रत 2015 के महत्त्वपूर्ण दिवस-

    नहा खा – 15, नवम्बर 2015 

    खरना / लोहंडा – 16 , नवम्बर 2015

    सांझा अर्ग – 17, नवम्बर 2015

    सुबह अर्ग – 18 , नवम्बर 2015

    पारण – 18, नवम्बर 2015

    छठ पूजा गीत-

    1. ओ दीनानाथ

    2. उठअऽ सुरुज होइल बिहान

    3. उगीहें सुरुज गोसैया हो

    4. साम चकेबा खेलब

    5. केलवा के पात पर

    6. हे छठी मैया

    7. हे गंगा मैया

                                                                                          उत्सव का स्वरूप –

    छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। नहाय खाय पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है। लोहंडा और खरना दूसरे दिन कार्तीक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। संध्या अर्घ्य तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है। उषा अर्घ्य चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं। क्या है छठ पूजा की महिमा, क्यों देते हैं सूर्य को अर्घ इस पर्व के बारे में पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। मैथिल वर्षकृत्य विधि में भी ‘प्रतिशर षष्ठी’ की महिमा के बारे में बताया गया है। बताया जाता है कि सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण जल में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे। पूजा के बाद कर्ण किसी भी याचक को इस व्रत को सभी हिंदू अत्यंत भक्ति भाव व श्रद्धा से मनाते हैं। सूर्याअर्घ के बाद व्रतियों से प्रसाद मांगकर खाने का प्रावधान है। प्रसाद में ऋतुफल के अतिरिक्त गेहूं के आंटे और गुड़ से शुद्ध घी में बने ठेकुआ व चावल के आंटे से गुड़ से बने भूसवा का होना अनिवार्य है। षष्ठी के दिन समीप की नदी या जलाशयों के तट पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ समर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है। पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाली व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं। व्रत समाप्त होने के बाद व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि पंचमी के सायंकाल (खरना पूजन) से ही घर में भगवती षष्ठी का आगमन हो जाता है। इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन व्रत में शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है।

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