पर्वकाल निर्णय- किस पर्व को किस दिन मनाना चाहिए यह एक समस्या का विषय रहा है। इसका पूर्ण निर्णय तो धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु, व्रतपारिजात, कल्पद्रुम आदि ग्रन्थों के मनन करने से ही जाना जा सकता है। किन्तु सभी के लिए उन्हीं ग्रन्थों के आधार पर हम संक्षिप्त में विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं आशा है कि आप सभी इससे लाभान्वित होंगे।
नवसंबत्सर महोत्सव- यह चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। संवत्सरारम्भ मलमास में भी हो सकता है। किन्तु देवी स्थापना शुद्ध मास में ही होती है। यदि प्रतिपदा पहले दिन 60 घड़ी हो और दूसरे दिन उदय में रहे तो पहले दिन ही देवी की स्थापना होगी।
रामनवमी- चैत्र शुक्ल नवमी के दिन पुनर्वसु युक्ता मध्यान्ह व्यापनी करनी चाहिए यदि दो दिन हो तो परा ग्रहण करें अष्टमी युक्ता कदापि न करें।
विषुवत संक्रान्ति- वैशाख मास की संक्रान्ति को संक्रमण काल से पूर्वापर में 2 घड़ी पुण्यकाल है।
अक्षय तृतीया- वैशाख शुक्ल तृतीया पूर्वाह्न व्यापिनी लेनी चाहिए यदि दो दिन रहे तो परा ग्रहण करनी चाहिए।
गंगा सप्तमी- वैशाख शुक्ल सप्तमी मध्यान्ह व्यापिनी ग्राह्य है। यदि दो दिन हो तो मध्यान्ह व्याप्त पूर्वा श्रेष्ठ है।
नृसिंह चतुर्दशी- वैशाख शुक्ल चतुर्दशी सायं व्यापिनी ग्राह्य है। यदि दो दिन हो तो जो अधिक रहे उसे ग्रहण करना चाहिए। स्वाती नक्षत्र पड़े तो विशेष सिद्ध योग होता है।
वैशाखी पौर्णमासी- यह उदय व्यापिनी ग्राह्य है इसमें द्वादश कुम्भदान स्वर्णदान धेनुदान भूमिदानादि का विशेष फल है।
वट सावित्री व्रत- ज्येष्ठ अमावस्या प्रदोष व्यापिनी अथवा चतुर्दशीसिद्धा ग्राह्य है। यह महिलाओं का व्रत है।
गंगा दशहरा- ज्येष्ठ दशमी जिस दिन दश योग हों- दशमी, बुद्धवार, शुक्लपक्ष, हस्तनक्षत्र, व्यतीपात योग, गरकरण, कन्या का चन्द्रमा, वृष का सूर्य, आनन्द योग।
हरशयनी एकादशी- आषाड़ शुक्ला एकादशी अधिकतर द्वादशी विद्धा करते हैं दशमी विद्धा नहीं करते हैं। इस दिन से चातुर्मास व्रत प्रारम्भ होते हैं।
आषाड़ी पूर्णिमा- औदयि की व्यासपूजा में मध्यान्ह व्यापिनी कोकिलव्रत अथवा शिवशयनोत्सव में प्रदोश व्यापिनी ग्राह्य है। इसे व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन अन्नादि दान करने से अक्षय अन्नादि की प्राप्ति होती है।
हरियाला- मिथुनार्क के मासान्त के रात्रि को तथा कर्क संक्रान्ति के प्रातःकाल यवादि द्वारा उत्पन्न हरित तृणों से शिव पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन होता है। दिन छोटे और रात बड़ी होने लगती है। माताऐं सभी को हरेला लगाती हैं तथा स्वजनों के सुख शान्ति की कामना करती हैं।
श्रावणमास- इस मास में जप तप दान पूजा पाठ का विशेष फल है इस मास में विशेष कर सोमवार वा चतुर्दशी को शिव पार्थिव पूजा की जाती है। शिव चतुर्दशी प्रदोष व्यापिनी पूर्व विद्धा ग्राह्य है।
उपाकर्म- श्रावणपूर्णिमा श्रवणयुक्त संगव व्यापिनी ग्राह्य है। यदि इस दिन संक्रान्ति अथवा ग्रहण हो तो श्रावणमास के ही हस्त युक्त पंचमी में यजुर्वेदीय उपाकर्म करते हैं। यदि पौर्णमासी दूसरे दिन पांच घड़ी से कम हो तो पहले दिन उपाकर्म करना चाहिए। इसी दिन रक्षाबन्धन भी होता है किन्तु भद्रा में रक्षा नहीं बाधनी चाहिए। इस वर्ष 29-08-2015 को 13 बजकर 50 मिनट तक भद्रा है। अतः 13 बजकर 51 मिनट से 16बजकर 13 मिनट तक रक्षाबन्धन किया जाएगा।
आगे जारी रहेगा……………………………………………………………….