सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र , शनि , राहु , केतु , ये नव ग्रह हैं | मुख्यतया प्रथम सात ग्रह आकाश में दीप्तमान हैं | राहु केतु को छायाग्रह माना जाता है इस कारण से ये अन्य ग्रहों की भांति दिखलाई नहीं देते | फिर भी इन दो ग्रहों का महत्व फलित ज्योतिष में कम नहीं है |
ग्रहों का राशि स्वामित्व –
मेष वृश्चिकयो भौम: , शुक्रो वृष तुलाधिप : बुध कन्या मिथुनोयो : चन्द्रमा कर्कटधिप: जीवो मीन धनु: स्वामी शनि मकर कुम्भयो: सिंहस्याधिपति: सूर्य: कथितो गणकोत्त्मै: ||
मेष व वृश्चिक के स्वामी मंगल वृष और तुला के शुक्र मिथुन और कन्या के बुध धनु और मीन के गुरु मकर और कुम्भ के शनि तथा सिंह राशि के स्वामी सूर्य हैं |
ग्रहों के गुण –
ग्रहों की त्रिगुणात्मक प्रकृति है | सूर्य गुरु और चन्द्रमा सत्वगुणी बुध और शुक्र रजोगुणी शनि , मंगल , राहु , व केतु को तमोगुणी कहा गया है | ये सभी ग्रह अपने गुणों के अनुरूप शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं |
ग्रहों की कारक स्थिति –
सूर्य – आरोग्य, मन की शुद्धता, पिता, रूचि, प्रताप, ज्ञान, जुआ खेलने की प्रवृति, धैर्य, साहस, औषधि, फोटोग्राफी, न्याय सम्बंधी, क्रिया कलाप, इजीनियर, विद्युत सम्बंधी कार्य, बडे भाई का सुख, शरीर, व्यवहार, पीठ, नाडी, दाई आंख, कर्म, तेज, आदि ।
चन्द्रमा – सम्पत्ति, बुद्धि, राजकृपा, माता के प्रति चिन्ता, मन, यश, पुष्टता, रक्त, बाईं आंख, फेफडा, छाती, स्मरण, शक्ति, आवेग, भावनायें, चांदी, मोती, श्वेत रंग, डेयरी, जहाज, कला, प्रेम, कविता रचना कीर्ति, निद्रा, व्याधि, दवा, अनाज, आयात, निर्यात, आदि ।
मंगल – रक्षा कार्य, स्वदेश प्रेम, सेना एवं पुलिस विभाग, साहस, धैर्य, युद्ध, लूटमार, चतुराई, रक्त सम्बंधी बीमारी, प्रदोष, गर्भ, प्रदर, रज, पित्त, वायु, कान का रोग, खाज खुजली, वीरता, चौर्य काय,र् आदि ।
बुध – पेट का रोग, हस्त रेखा, विशेषज्ञ, एकाउंटेंट, ज्योतिष, नपुंसकत्व, खेलकूद, चेतना, बुद्धि, गणित, कार्य, परीक्षा, विद्यार्थी, वायु रोग, कोढ, मंदाग्नि, भूत प्रेतबाधा, आलसीपन, सिरदर्द, पागलपन, वृथा अभिमान, कल्पना और स्मरण, शक्ति, स्वर, श्वास, रोग, गूंगापन, हकलाहट, मातृभाषा, बैंक, बीमा, वाणिज्य, व्यवसाय, डाकतार विभाग, शेयर बाजार आदि ।
बृहस्पति – ज्ञान, चिंतन, धार्मिक कार्य, तीर्थ या़त्रा, मांगलिक कार्य, वेद पठन, शिक्षा, शास्त्र चर्चा, पुत्र, विवेक, निर्भयता, सहायता की भावना, तीव्र वुद्धि, क्षमता, संकट में धीरता, सर्व सुख, आजीविका, वाकपटुता, व्याख्याता, लेखक, प्रकाशक, आदि ।
शुक्र – कन्या संतान, मासिक धर्म, पेट की जलन, स्त्री, रोग, अंडाशय, टांसिल, शराब का व्यापार, व्यभिचार, दास -दासी, प्रेम में लोकप्रियता, स्त्रियों से लाभ, रेस, फिल्म व्यापार, सट्टा, जुआ, यश, वस्त्र, रत्नाभूषण, धन, सुगंधित पदार्थ, गीत काव्य, कला प्रेम, मधुर वाणी, गायन वादन, आदि ।
शनि – दुष्टता, पति या पत्नी से अनबन, तलाक, पत्थरों का व्यापार, वात रोग, गठिया, नीच कार्य, उन्माद, अंधकार, रूकावट, मतभेद, मशीनों के पाट्र्स का व्यापार, लोहे तिल आदि का व्यापार काला रंग, कर्कश वाणी, दार्शनिक आदि ।
राहु – ताश, तर्कशक्ति, छिद्रान्वेषण, आध्यात्मिक उन्नति, अस्पष्ट व्यवहार, भ्रम, अफवाहें आदि ।
केतु – बलात्कार, दुष्टता, फूहडबातें, नीच व निम्न स्तर के कार्य, कठिन कार्य, चर्मरोग, पिशाच वाधा, क्षुधा, निर्बलता, कृशता, आदि ।
ग्रह | उच्च राशि | परमोच्च अंश | नीच राशि | परम नीच अंश |
सूर्य | मेष | १० | तुला | १० |
चन्द्र | वृष | ३ | वृश्चिक | ३ |
मंगल | मकर | २८ | कर्क | २८ |
बुध | कन्या | १५ | मीन | १५ |
गुरु | कर्क | ५ | मकर | ५ |
शुक्र | मीन | २७ | कन्या | २७ |
शनि | तुला | २० | मेष | २० |
राहु | वृष | १५ | वृश्चिक | १५ |