कालसर्प योग का प्रादुर्भाव कब हुआ यह कोई नहीं जानता है । परन्तु यह आजकल बड़ा विषय बन चुका है कई पुस्तकें भी बाजार में भी इस योग के बारे में आ चुकी हैं। मेरे पास भी मेल आई हैं की यह योग क्या है ? इसके उपाय क्या हैं ? इस लिए यहाँ पर मैं इस योग के बारे में कुछ संकलित, एस्ट्रोक्लासेज.कॉम द्वारा प्रकाशित तथ्यों को सामने ला रहा हूँ । यह बारह प्रकार का होता है-
१.अनन्त कालसर्प योग:–
जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है । ऐसे जातकों को अपने व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम करनी पड़ती है । उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है ।
मानसिक परेशानियां जातक को आये दिन व्यथित करती रहती हैं । उन्हें अपयश का भी भागी होना पड़ता है । मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं । व्यवसाय में उसे आये दिन नुकसान होता रहता है । लाटरी, शेयर व व्याज के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है ।
यह योग जातकों को प्राय: निंदित कर्मों में संलग्न कराता है । शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है । उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डावाडोल रहती है । जिसके फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घुलने लगती है ।
जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी कभी-कभी वंचित रहना पड़ सकता है, ऐसा देखा जाता है । उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते । कई प्रकार के षड़यंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है । उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है ।
लेकिन इतनी प्रतिकूलताओं के बावजूद भी जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं । वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अपितु अचानक घटित होता है ।
जो जातक इस योग से ज्यादा परेशानी महसूस करते हैं । उन्हें निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठाना चाहिए ।
दोष निवारण के कुछ सरल उपाय:-
१.प्रतिदिन एक माला ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जप करें । कुल जप संख्या 21 हजार पूरी होने पर शिव का रुद्राभिषेक करवाएं ।
२.कालसर्पदोष निवारक यंत्र घर में स्थापित करके उसका नियमित पूजन करें ।
३.नाग के जोड़े चांदी के बनवाकर उन्हें तांबे के लौटे में रखकर बहते पानी में एक बार प्रवाहित कर दें ।
४.प्रतिदिन स्नानोपरांत नवनागस्तोत्र का पाठ करें ।
५.राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्र का जप करें और जब जप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्र का दान करें ।
६.शनिवार से शुरू करके शनिवार के अन्दर ही हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और ग्यारह नारियल हनुमान जी के मंदिर में दान करें ।
७.श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक कर शिवलिंग पर शहद का लेप करके ”ॐ नम: शिवाय” का सुविधानुसार जप करें ।
८.शनिवार का व्रत रखते हुए हर शनिवार को शनि व राहु की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल में अपना मुंह देखकर उसे शनि मंदिर में दान कर दें ।