ग्रहों का बलाबल 6 प्रकार का होता है।
1- स्थान बल- जो ग्रह उच्च राशिस्थ, स्वगृही, मित्र राशिस्थ, मूल त्रिकोण में स्वनवांश में या अपने वर्गो में स्थित हो तो वह ग्रह स्थान बली कहलाता है।
2- काक बल- शनि राहु चन्द्र मंगल रात्रि बली कहलाते हैं, सूर्य गुरू दिन में शुक्र मध्यान्ह में व बुध का दोनों कालों में बली माना जाता है।
3- दिक बल- दिक बल से तात्पर्य ग्रहों का दिशाओं में बली होना माना गया है। लग्न को पूर्व सप्तम को पश्चिम चतुर्थ को उत्तर तथा दशम को दक्षिण दिशा कहा जाता है। बुध व गुरू पूर्व दिशा में चन्द्र और शुक्र उत्तर दिशा में शनि पश्चिम दिशा में सूर्य मंगल दक्षिण दिशा में बली होते हैं।
4- नैसर्गिक बल- शनि से मंगल, मंगल से बुध, बुध से गुरू, गुरू से शुक्र, शुक्र से चन्द्र तथा चन्द्र से सूर्य क्रमानुसार ये सब ग्रह उत्तरोत्तर बली माने जाते हैं।
5- चेष्टा बल- चेष्टाबल को अयन बल भी कहा जाता है। उत्तरायण में सूर्य से चन्द्र तथा दक्षिणायन में क्रूर ग्रह बली माने जाते हैं।
6-दृक बल- शुभ ग्रहों से दृष्ट ग्रह दृक बली कहलाता है।